Add To collaction

लेखनी कहानी -08-May-2022 बंदर के हाथ में उस्तरा

"# शॉर्ट स्टोरी चैलेंज प्रतियोगिता हेतु" 

जॉनर : हास्य व्यंग्य  , सामाजिक 

बंदर के हाथ में उस्तरा 

सखि, 
दिल बहुत धड़क रहा है । अब तुम यह मत कह देना कि दिल तो होता ही धड़कने के लिए है । हां, यह बात मैं भी जानता हूं । मगर दिल इसलिए धड़क रहा है कि देश में क्या क्या नौटंकियां चल रही हैं ? आखिर हो क्या रहा है इस देश में ? क्या इसी दिन के लिए कुर्बानियां दी थी भगतसिंह ने ? क्या सुभाष चंद्र बोस इसी दिन के लिए अंग्रेजों से भिड़ गए थे ? क्या बापू ने ऐसा "राम राज्य" चाहा था ? बस, यही सोच सोचकर चक्कर से आने लगे हैं । 

सखि, तुझे तो पता ही है कि पश्चिम बंगाल में जबसे चुनावों का परिणाम घोषित हुआ है यानि 2 मई, 2021 के बाद से एक राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं पर जिस तरह से सत्तारूढ दल के लोगों द्वारा हमले किये जा रहे हैं , उनकी नृशंस हत्याएं करके लाशों को सरेआम पेड़ से लटकाया जा रहा है । उनकी पत्नियों, बहन बेटियों और माताओं से सामूहिक बलात्कार किया जा रहा है । उन्हें पलायन के लिए मजबूर किया जा रहा है । पुलिस या तो रिपोर्ट दर्ज नहीं करती है या फिर मूकदर्शक बनी रहती है । छोटी छोटी घटनाओं पर स्वतः संज्ञान लेने वाला सुप्रीम कोर्ट इन बड़े बड़े नरसंहारों पर आंख बंद कर बैठा रहता है तब लगता है कि देश में इतनी अंधेरगर्दी कैसे चल सकती है ? मगर राजनीतिक द्वेष इस हद तक जा पहुंचा है कि जिस सरकार पर नागरिकों की सुरक्षा का उत्तरदायित्व है वही सरकार अपने विरोधियों का कत्लेआम कर रही है और तथाकथित ईमानदार,  निष्पक्ष सर्वोच्च न्यायालय यह सब होते हुए देख रहा है । अब, इससे बुरे दिन और कौन से होंगे सखि ? 

एक राज्य और है महाराष्ट्र।  वहां की लीला और भी विचित्र है । चुनावों के समय दो राजनीतिक दल मिलकर चुनाव लड़े थे । जनता ने उन्हें जिता भी दिया । मगर सत्ता का खेल बड़ा ही निराला है । उन दो दलों में से एक दल विपक्षियों के खेमे में जा खड़ा हुआ और मुख्य मंत्री बनने के लिए अपने साथी दल की पीठ में खंजर भौंक दिया । उस धोखेबाज दल ने सत्ता हथिया ली और फिर "लूट" शुरू कर दी । हमने तो "हफ्ता वसूली" केवल फिल्मों में ही देखी थी मगर इस राज्य में गृह मंत्री खुद पुलिस के माध्यम से "वसूली" करवा रहा था । आज वो मंत्री जेल की हवा खा रहा है । उस राज्य में पुलिस की मौजूदगी में दो निर्दोष साधुओं की सरेआम पीट पीटकर हत्या कर दी जाती है और सरकार दोषियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करती है । एक अभिनेत्री को एक सांसद सार्वजनिक रूप से "हरामखोर" बोलता है और बेशर्मी से कहता है कि वह तो उसे "नॉटी" कह रहा था । दादागिरी से उसका बंगला गिरा दिया जाता है । इसे कहते हैं तानाशाही ।

एक टेलीविजन चैनल सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मृत्यु पर सवाल पूछता है तो उसे आतंकवादियों की तरह बख्तरबंद गाड़ी में जानवरों की तरह ठूंस कर ले जाया जाता है और बेशर्मी की हद देखिए कि जिस उच्च न्यायालय पर नागरिक अधिकारों की जिम्मेदारी होती है वही उच्च न्यायालय उसकी जमानत रद्द कर देता है तब सुप्रीम कोर्ट सरकार और उच्च न्यायालय दोनों को लताड़ लगाता है । 

मजे की बात देखिए कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को धता बताकर अवैध रूप से चलने वाले लाउडस्पीकरों पर कोई कार्रवाई नहीं होती मगर एक दलित सांसद और उसके विधायक पति पर सिर्फ इसलिए राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करके उन्हें सलाखों के पीछे इसलिए भेज दिया जाता है कि उन्होंने "मातो श्री" के सामने हनुमान चालीसा पढने की बात की थी जिसे बाद में वापस भी ले लिया था । अफसोसजनक बात यह है कि फिर एक बार बंबई उच्च न्यायालय नागरिक अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहा है । 

ये सब नौटंकियां चल ही रही थी कि एक और घटनाक्रम घटित हो गया । हरिश्चंद्र से भी ज्यादा ईमानदार,  दुनिया का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति "सर जी" को एक और राज्य मिल गया "राज" करने के लिए।  और इस राज्य के पास तो पुलिस भी है जो उसके अधीन है । बस, अब क्या है अब तो शोले फिल्म के धर्मेंद्र के डॉयलाग "एक एक को मारूंगा , चुन चुन के मारूंगा" वाली स्टाइल में सारे विरोधियों को "जेल में डालूंगा" की जिद के चलते दिल्ली के एक आदमी के  खिलाफ पंजाब में एफ आई आर दर्ज कराई जाती है । पंजाब पुलिस आतंकवादियों की तरह आती है और उसे "दबोचकर" ले जाती है । तब दिल्ली पुलिस हरकत में आती है और पंजाब पुलिस को अपहरण करने के जुर्म में अंदर कर देती है । इस घटना को देखकर बड़ा आनंद आया सखि, । जंगलराज के बारे में हमने पहले केवल सुना था, अब देख रहे हैं । अभी तो पता नहीं और क्या क्या देखने को मिलेगा।  
अंत में एक बात और कहना चाहता हूं सखि, कि पहले तो इस देश ने केवल एक ही "मनमोहन सिंह" देखा था । मनमोहन सिंह होने का मतलब है नाम का राजा जबकि वास्तविक राजा कोई और ही था , और वह राजा था या रानी, तुम अच्छी तरह से जानती हो । तो अब तो ऐसे "मनमोहन सिंह" की बाढ आ गई है । महाराष्ट्र में नाम के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे हैं लेकिन सरकार तो शरद पंवार चला रहे हैं जबकि वे किसी भी संवैधानिक पद पर नहीं हैं ।

इसी तरह पंजाब में भगवंत सिह मान सिर्फ नाम के मुख्यमंत्री हैं जबकि "सर जी" दिल्ली से ही पंजाब चला रहे हैं । रोज संविधान की दुहाई देने वाले रोज संविधान का मखौल उड़ा रहे हैं । और सब लोग आँख, कान बंद कर बैठे हुए  हैं । ऐसा लग रहा है जैसे बंदर के हाथ में उस्तरा लग गया है । अब तो भगवान ही मालिक है । 

किस किस की बात करें, किस किस को सुनाएं 
जो भी विरोध में बोलेगा वो ही जेल की हवा खाए 

आज इतना ही , कल फिर मिलते हैं सखि

हरिशंकर गोयल "हरि" 
8.5 2022 

   29
13 Comments

kashish

12-Feb-2023 02:43 PM

very nice

Reply

sunanda

01-Feb-2023 02:59 PM

nice

Reply

Seema Priyadarshini sahay

09-May-2022 05:11 PM

बहुत खूबसूरत

Reply